छठ पूजा का इतिहास क्या है
मुग्दल ऋषि ने रामजी और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया
मुग्दल ऋषि के कहने पर माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की
उपासना की और व्रत रखे. इसके बाद माता सीता और रामजी दोनों ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के
आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किए. इसलिए छठ पर्व की शुरुआत रामायण काल से मानी जाती है
छठ पूजा में व्रती का बिस्तर पर सोना वर्जित माना जाता है
व्रत करने वाले व्यक्ति को छठ महापर्व के चारों दिन जमीन पर चटाई बिछाकर सोना चाहिए.
छठ पूजा के समय बहुत आत्म संयम रखना चाहिए. इन चार दिनों में खुद को नकारामक बातों से दूर रखना चाहिए
छठ पूजा पर खास तौर पर सूर्य देवता और षष्ठी माता की पूरे अनुष्ठान के साथ
नदी के किनारे पूजा की जाती है. इस दिन षष्ठी देवी का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है
उत्तरी भारच में षष्ठी देवी को छठ मैया कहा जाता है.
छठ महापर्व में भगवान सूर्य की आराधना के साथ-साथ छठी मैया की भी विधि-विधान से पूजा की जाती है
बता दें कि छठ पर्व के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य और छठी मैया की पूजा के साथ इस व्रत का विधिवत पारण किया जाता है
आइए जानते हैं छठ पर्व में क्यों की जाती है सूर्य देव और छठी मैया की पूजा
छठ पूजा का पावन पर्व 28 अक्टूबर यानी कल से शुरू हो चुका है